नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक महत्वपूर्ण मामले की सुनवाई करते हुए मस्जिद में ‘जय श्रीराम’ नारा लगाने के आरोपों को लेकर कर्नाटक हाईकोर्ट के आदेश को बरकरार रखा। कोर्ट ने सवाल किया कि ‘जय श्रीराम’ का नारा लगाना अपराध कैसे हो सकता है। इस मामले में, याचिकाकर्ता से यह भी पूछा गया कि मस्जिद के अंदर नारे लगाने वाले आरोपियों की पहचान कैसे की गई।
यह मामला कर्नाटक के कुछ स्थानों पर मस्जिदों के अंदर धार्मिक नारे लगाने के आरोपों से जुड़ा हुआ था, जिसमें आरोप था कि कुछ लोगों ने जानबूझकर धार्मिक भावनाओं को आहत करने के उद्देश्य से नारे लगाए थे। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में कर्नाटक हाईकोर्ट के आदेश को सही ठहराया और धार्मिक नारे लगाने के खिलाफ कोई कार्रवाई न करने का निर्णय लिया।
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने न केवल धार्मिक भावनाओं को लेकर एक बड़ी बहस को जन्म दिया है, बल्कि यह भी सवाल खड़ा किया है कि क्या केवल नारेबाजी को अपराध माना जा सकता है, जब तक कि उस नारेबाजी से कोई वास्तविक हिंसा या धार्मिक तनाव पैदा न हो।
कर्नाटक हाईकोर्ट ने पहले ही इन आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई को लेकर फैसला सुनाया था, जिसमें इन पर कोई ठोस आरोप नहीं लगे थे। अब सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले को पुनः पुष्टि करते हुए यह स्पष्ट किया कि बिना ठोस प्रमाण के किसी के खिलाफ कार्रवाई करना उचित नहीं है।