उत्तर प्रदेश के संभल जिले के चंदौसी क्षेत्र में हो रही खुदाई के दौरान एक प्राचीन बावड़ी और सुरंग का रहस्य सामने आया है। जिला प्रशासन और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) की टीम ने इस क्षेत्र में स्थित पृथ्वीराज चौहान की बावड़ी का निरीक्षण किया। इन संरचनाओं का ऐतिहासिक महत्व दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है और इस खोज के बाद क्षेत्र में इतिहास के नए पहलुओं के खुलासे हो रहे हैं।

खुदाई से मिले ऐतिहासिक अवशेष
चंदौसी के लक्ष्मण गंज क्षेत्र में खुदाई के दौरान कई महत्वपूर्ण खोजें की गई हैं। यहां एक प्राचीन बावड़ी के साथ एक सुरंग मिली है, जिसका निर्माण 1857 के स्वतंत्रता संग्राम से संबंधित माना जा रहा है। सुरंग में मिट्टी के बर्तन, पत्थरों की कलाकृतियां, ईंटें और स्वास्तिक अंकित ईंटें मिली हैं। इसके अलावा, गणेश जी और गौरा पार्वती की मूर्तियों के अवशेष भी मिले हैं। इन मूर्तियों और अवशेषों से पता चलता है कि यह क्षेत्र ऐतिहासिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण रहा है।
संभल के ऐतिहासिक महत्व का बढ़ता हुआ प्रभाव
संभल जिले में हुई इस खुदाई के बाद यह अनुमान लगाया जा रहा है कि यहां और भी ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहरें छिपी हो सकती हैं, जो भारतीय इतिहास के महत्वपूर्ण पहलुओं को उजागर कर सकती हैं। जिलाधिकारी ने इस पर टिप्पणी करते हुए कहा कि यदि इतिहास को संजोया नहीं गया, तो वह हमेशा के लिए खो सकता है।
संभल को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने की योजना
संभल जिले में होने वाली इन खोजों के बाद सरकार इसे एक बड़े पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने की योजना बना रही है। जिलाधिकारी ने कहा कि संभल में 200 से 250 ऐसे स्थान होंगे, जो पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बनेंगे। इन स्थलों पर पर्यटक दो-चार दिन बिताएंगे और संभल की ऐतिहासिक धरोहर का आनंद लेंगे।
संभल में अब तक क्या-क्या मिला?
अब तक की खुदाई में कई महत्वपूर्ण वस्तुएं प्राप्त हुई हैं, जिनमें गणेश जी की मूर्ति, गौरा पार्वती की मूर्ति, और स्वास्तिक के चिह्न वाली ईंटें शामिल हैं। इसके अलावा, नीमसार क्षेत्र में एक कुआं भी मिला है, जिसमें पानी पाया गया है। ये सभी अवशेष और संरचनाएं संभल की ऐतिहासिक धरोहर का महत्वपूर्ण हिस्सा बन सकती हैं।
बावड़ी क्यों महत्वपूर्ण है?
बावड़ी (या बावली) प्राचीन भारत में जल संरक्षण के लिए बनाई गई संरचनाएं होती थीं, जो सीढ़ीनुमा कुएं के रूप में होती थीं। यह केवल जल भंडारण के लिए नहीं, बल्कि एक सामाजिक और धार्मिक केंद्र के रूप में भी कार्य करती थीं। इन बावड़ियों का उपयोग बारिश के पानी को संग्रहित करने के लिए किया जाता था, खासकर उन क्षेत्रों में जहां पानी की कमी थी। अब ये संरचनाएं ऐतिहासिक धरोहर और पर्यटन स्थल के रूप में प्रसिद्ध हो गई हैं।