मध्यप्रदेश में अब 100 फीसदी दिव्यांगों को सरकारी नौकरियों में प्राथमिकता दी जाएगी। यदि किसी विभाग ने इस आदेश का पालन नहीं किया तो विज्ञापन निरस्त कर दिए जाएंगे। यह महत्वपूर्ण आदेश इंदौर हाईकोर्ट ने मंगलवार को जारी किया है।
वास्तव में, कई विभागों में आंशिक रूप से दिव्यांग व्यक्तियों की भर्ती की गई थी और कुछ मामलों में तो ऐसे लोग भी भर्ती हो गए थे, जो संबंधित नौकरी के लिए पात्र नहीं थे। इस पर 100 फीसदी दिव्यांगों ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी।
इंदौर निवासी सिद्धि पाल (ऑटिज्म) और गुरदीप कौर वासु (अंध, मूक, बधिर बहु दिव्यांग) दोनों 100 फीसदी दिव्यांग हैं। इन्होंने कौशल विकास विभाग के विज्ञापन के आधार पर बहु दिव्यांग कोटा में चतुर्थ श्रेणी के पद पर आवेदन किया था। इसके बावजूद सामान्य प्रशासन विभाग ने कम दिव्यांगता वाले लोगों को प्राथमिकता दी और दिव्यांगता की गंभीर प्रकृति को नज़रअंदाज किया।
इसी तरह मूक बधिर शहजाद ने जावरा नगर पालिका रतलाम में सफाई संरक्षक के पद के लिए आवेदन किया था, और सूफिया बेग ने कन्नौद नगर पालिका में वही पद के लिए आवेदन किया था। इन दोनों 100 फीसदी दिव्यांग व्यक्तियों को कम दिव्यांगता वाले व्यक्तियों के मुकाबले प्राथमिकता नहीं दी गई थी।
इस मामले में न्यायमूर्ति सुबोध अभ्यंकर ने कौशल विकास विभाग और नगर पालिका कन्नौद व जावरा के विज्ञापनों को निरस्त कर दिया और चार माह के भीतर 100 फीसदी दिव्यांगों को प्राथमिकता देते हुए भर्ती प्रक्रिया शुरू करने के निर्देश दिए हैं।
यह फैसला दिव्यांग जन अधिकार नियम 2017 के तहत लिया गया है, जिसमें यह स्पष्ट किया गया है कि अधिक दिव्यांगता वाले व्यक्तियों को सरकारी नौकरी में प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
सरकार द्वारा जारी सर्कुलर (3 जुलाई 2018) में इस विषय में विस्तृत जानकारी दी गई थी, जिसमें यह बताया गया था कि कम दिव्यांगता वाले व्यक्तियों को स्वास्थ्य सेवा में आरक्षण दिया जा रहा है, जबकि ज्यादा दिव्यांगता वाले व्यक्तियों को सरकारी सेवा में नियुक्ति से वंचित किया जा रहा है। यह कार्यवाही दिव्यांग जन अधिकार नियम 2017 के प्रावधानों के खिलाफ है।